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अक्ल कब आयेगी,

पीने वालों को, पीने का बहाना चाहिये, जिंदगी दो ही चक्कों पर चलती है, कभी खुशी कभी गम, इन्हें इन दोनों मौकों का इंतजार होता है, खुशी के मौके वालों के लिए सीमा रेखा है, जब-जब खुशी आयेगी तब-तब रम का साथ होगा, पर गम में पीने वालों के लिए कोई सीमा रेखा नहीं, मानो गम ने रम पीने की परमिट दे दिया हो, ये पूरी जिंदगी पीते-पीते घर के सुख-चैन सब पी जाते है, अंत में आंसू पीना पड़ता है,

नहीं बचा पाई " उसे "

तिवारी जी------------- पिंकी के पापा,

श्रीमती जी------------- मम्मी,

विनय तिवारी----------- भाई,

श्रीमती अनु------------ भाभी,

विनी कुमारी-------------- पिंकी की भतीजी,

आंखों की अपनी भाषा होती है...................

एक समय की बात है, मुझे अपनी ननद की,एक साल की बेटी को रानीगंज मारवाड़ी अस्पताल से अंडाल, उसके घर पहुंचाने का काम दिया गया, मैं अपने 12 साल के बेटे के साथ बर्नपुर से रानीगंज गई, वहां मेरी ननद अपनी बेटी के साथ भर्ती थी, वहां पहुंचकर डाक्टर से छुट्टी लिया, फिर हम चारों रेक्शा कर के जल्दी से रेलवे स्टेशन पहुंचे,

ननद...... भाभी, टिकट मत लो,

मैं.......क्यों,

"प्यार" कभी कम नहीं करना

मैं पायल बहुत ही साधारण सी लड़की हूं, मुझे लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं, अपने काम-से-काम रखती हूं, मेरी सहेलियॉ मुझे घमंडी के नाम से जानती है, क्या करू मैं खुद को बदलना चाहती हूं, पर चारों तरफ स्वार्थी और मतलबी दुनियां को देख उनसे दूर रहना पसंद करती हूं,

बना दिया ना 'अपने जैसा '

आम के पेड़ में आम और बबूल के पेड़ में बबूल ( काँटा) ही होता है, जैसा बीज-वैसा पौधा, ऐसे तो बच्चे माता-पिता के प्रतिबिम्ब होते है पर हमेशा ऐसा नही होता, हम इंसानों में, अनपड़ मां-बाप के बुद्धिमान बच्चे और संत स्वभाव वाले माता-पिता के घर में शैतान बच्चे हो सकता है,

जान ले ली" Marksheet " ने

इंसान की पहचान, एक कागज के टुकड़ों में सिमट के रह गया है, जिसे हम marksheet के नाम से जानते है, कितने अफसोस कि बात है कि कामयाबी की चाह में,हम किस ओर जा रहे है, हमे भी नहीं पता, काश किसी के marksheet से उसके आचरण, स्वभाव, सदाचार, सब्र, विनम्रता, आदि का पता चल सकता, सोचने वाली बात यह है कि इसी कागज के टुकड़े को इकट्ठा करने की होड़ में हम इंसान सबकुछ खोते जा रहे है, सिर्फ इसलिए कि एक' अच्छी नौकरी

जबरदस्ती की जोड़ी

हम सब एक घंटा के लिए भी, कहीं जाते है तो कितनी तैयारी और इंतजाम से जाते है, काम करके, बच्चों को समझा कर,( ठीक से रहना, बदमाशी मत करना, भूख लगे तो खा लेना, इत्यादी) भगवान को ये क्यों नहीं समझ में आता ? जिसे वो हमेशा के लिए, दुनियां से ले जा रहे है, उसे थोड़ा वक्त तो दे, उसे कुछ कहना-सुनना होता है, इस तरह अपनों को अपनों से जुदा नहीं करते, बहुत दर्द होता है,

प्यार या फर्ज

ट्रेन के एक डिब्बे में, कोई दुल्हन अपने दूल्हे के साथ ससुराल जा रही हो, उसी डिब्बे में उसे अपना प्रेमी मिल जाय तो......................... क्या दूल्हन प्रेमी को पहचानने से इंकार कर देगी ? या दूल्हे को छोड़ ,प्रेमी के साथ भाग खड़ी होगी,

सच्ची कहानी है, आप कहानी पढ़ने के पहले, सोचे किसकी जीत हुई होगी ' प्यार ' या ' फर्ज 'की

'खूबसूरती' मेरी दुश्मन है

मैं' प्रीती 'शादी के जोड़े में खुद को देखकर, दिल को समझा रही हूं, अब यहां से चलना होगा, ये घर पराया हो जायेगा, यहां सबकी दुलारी, वहां क्या अपनी जगह बना पाऊगी, तब तक अनु ( मेरी प्रिय सहेली) आकर कान में चिल्ला देती है, कहां खोई है, जीजाजी के यादों में,

मैं.......... अभी आने का समय मिला,

अनु........ क्या करती, मेरे घर भी मेहमान आये हुए थे,5 दिन रहकर आज गये, अब जाकर शांती मिला,