जबरदस्ती की जोड़ी

जबरदस्ती की जोड़ी

हम सब एक घंटा के लिए भी, कहीं जाते है तो कितनी तैयारी और इंतजाम से जाते है, काम करके, बच्चों को समझा कर,( ठीक से रहना, बदमाशी मत करना, भूख लगे तो खा लेना, इत्यादी) भगवान को ये क्यों नहीं समझ में आता ? जिसे वो हमेशा के लिए, दुनियां से ले जा रहे है, उसे थोड़ा वक्त तो दे, उसे कुछ कहना-सुनना होता है, इस तरह अपनों को अपनों से जुदा नहीं करते, बहुत दर्द होता है,

रमेश जी का परिवार छोटा और खुशी परिवार है, प्यारी सी दो बेटियां है, सीता-गीता दोनों कि उम्र 13-8 साल की है, देखने और पढ़ने में अच्छी, बेटियों को ही बेटे जैसा प्यार देते है, उन्हें कभी ऐसा नहीं लगा, काश उन्हें एक बेटा भी होता,

एक दिन दोनों स्कूल गई होती है, रमेश जी अपनी पत्नी के साथ बाइक से बाजार आये हुए थे, बाजार कर लौटते समय घर के पास चौराहे पर ट्रक से सड़क दुर्घटना में ही दोनों की मौत हो जाती है, आस-पास के लोग जो उन्हें जानते है, अस्पताल ले जाते है, पर कोई काम नहीं आती उनकी मेहनत,दोनों बच्ची स्कूल से आती है तो बारामदे में मम्मी-पापा की लाश को देख आवाक्‌ रह जाती है, आस-पास बैठे पड़ोसी अपने गोद में ले लेते है, उन्हें अहसास कराते है कि तुम्हारे मम्मी-पापा नहीं रहें, अपने किसी का फोन नम्बर है तो दो, उनका रोना रुकने का नाम नहीं, बड़ी मुश्किल से सीता अपने मामाजी का नम्बर खोज पाती है, उन्हें फोन किया जाता है, उनके आने के बाद, बाकी रश्म पूरा किया जाता है,

दूसरे दिन मामाजी सीता-गीता को अपने साथ ले जाते है, जो कि दूसरे शहर में है, वहां पहुंचकर दोनों खामोश रहती है, मामाजी के परिवार में पहले से 7 सदस्य थे, तीन बेटियां दो बेटे, अब उनका परिवार 9 सदस्यों वाला हो गया, सीता-गीता की आगे की पढ़ाई नहीं हो पाती है, उनका अपना बोलकर और कोई नहीं था, जहां मामाजी इन्हें छोड़ आते है, किसी तरह अपने पास ही रखते है,कुछ दिनों बाद मामाजी सीता को लेकर भाड़े घर में जाते है, कुछ सामान को साथ ले लेते है और कुछ को बेच देते है, अब इन दोनों बहनों की परवरिश मामा-मामी की जिम्मेवारी हो जाती है, धीरे-धीरे समय बितता है, दोनों घर के काम में मामी जी की हाथ बटाती है,किसी तरह दिन बीतते है, मामाजी परेशान है कि अपनी तीन बेटियों के लिए सोचु या बहन के दो बेटियों के लिए, कैसे होगी इनकी शादी, जिंदगी का गुजारा बड़ी मुश्किल से हो रहा है,

5 साल बाद,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सीता 18 साल की हो गई है, मामी चाहती है, एक-एक करके इनकी शादी करनी शुरू कर देनी चाहिए,सीता का ब्याह मंदिर से किया जायेगा, यह तो पक्का है पर कोई लड़का तो मिले,एक दिन, दूर का एक रिश्तेदार खुद, एक लड़की की तालाश में रमेश जी से मिलने आता है,

रमेश......... कैसे आना हुआ, यादव जी

यादव जी..... एक अच्छे रिश्ते का पता चला है, आप सीता के लिए बोल रहे थे, लड़का दो भाई है, अपना

                   व्यवसाय है, आप देख लेते,

' रमेश जी लड़का देखते है, वहां उन्हें दोनों भाई को दिखाया गया, सोहन और मोहन, सोहन की उम्र 28 साल, और मोहन की उम्र 20 साल, दोनों ही लड़के अच्छे है, उनके पिता से बात करने पर पता चलता है कि अगर लड़की अच्छी मिली तो दोनों बेटो कि शादी एक ही लग्न में कर देगें, आखिर दो-चार साल बाद दूसरे कि करनी ही है,

रमेश जी...... मेरे बहन की दो बेटियाँ है, जो देखने में बहुत ही सुन्दर है पर दुःख की बात है कि मेरी बहन

                  और बहनोई नही रहे, उन दोनों का कन्यादान मुझे ही करना है, मैं दहेज देने में असर्मथ हूं,

                   फिर भी जितना हो सकता है मैं करूगा,

लड़कों के पापा...... हमें दहेज नहीं चाहिए, मेरे दोनों बेटों से, उन दोनों बहनों का ब्याह कर लो, दोनों एक

                          ही घर में रहेगी, प्यार बना रहेगा,

रमेश जी........ नहीं हो सकता, सीता 18 साल की है जो आपके छोटे बेटे के लिए सही रहेगी, गीता अभी

                   13 साल की है, उसकी शादी बाद में करता,

लड़कों के पापा......आप जा सकते है, बड़ा लड़का पड़ा रहे और मैं छोटे की शादी कर दू, ऐसा नहीं होगा,

                         बड़े से बड़ी की और छोटे से छोटी की, शादी के लिए तैयार है तो आगे बात करते है,

                         गीता की उम्र कम है तो उसकी विदाई 2 साल बाद कर देना, अगर मंजूर है तो ठिक है

                         वर्ना कहीं और देख सकते है,

' रमेश जी घर चले आते है, अपनी पत्नी से सारी बात बताते है, वो राय देती है.... आप हां कर दो, लड़के बड़ी मुश्किल से मिलते है, दहेज भी नही देना है, मंदिर में शादी होगी, लगभग 20,000 रूपये में ही दोनों पार हो जायेगी, इससे ज्यादा की हमारी हैसियत भी नहीं, शादी का जोड़ा और कुछ कपड़े दे दिये जायेगे, अपनी बेटियों के लिए भी कुछ करना है, इतना सस्ता और अच्छा रिश्ता फिर नहीं मिलेगा,

रमेश जी...... जरा सोचो,18 साल की सीता का ब्याह 28 साल के सोहन के साथ और 13 साल की गीता

                  का ब्याह 20 साल के मोहन के साथ, क्या ये सही जोड़ी लग रही है,

रमेश की बीवी..... आप जोड़ा मिलाते रहे, ये रिश्ता हाथ से गया तो आप अपने सिर पर 5 लड़कियों का

                        बोझ लेकर इधर-उधर, अच्छे लड़के के तालाश में भटकना,

रमेश जी......ठीक है, मैं हॉ कर देता हूं,

' रमेश रिश्ते के लिए हाँ बोल देता है, लड़कों के पापा और कुछ रिश्तेदार आकर सीता-गीता को देखकर जाते है, दिन तय किया जाता है, लगभग एक महीना बाद मंदिर में शादी होती है, शर्त के हिसाब से गीता की विदाई नहीं होती है, सीता ससुराल चली जाती है, रमेश जी सीता के विदाई के बाद अपने परिवार के साथ, घर लौट आते है,

ससुराल में सीता का स्वागत होता है, वहां वह सबकी दुलारी रहती है, शादी में आये रिश्तेदार दो-चार दिन बाद लौट जाते है, अब घर में पिता समान ससुर और सोहन-मोहन जी है, यही चार लोगों का परिवार, घर में कोई और महिला नहीं होने के कारण सीता को ही घर के सारे काम करने पड़ते, सोहन अपने छोटे भाई मोहन को कभी-कभी घर पर ही रहने को बोलता ताकी वो सीता को, घर के कामों में सहायता कर सके,

मोहन को भी भाभी के साथ, हंसना, बोलना और काम करना अच्छा लगता, कभी-कभी का शिलशिला अब रोज में बदल जाता है, मोहन रोज दुकान से दोपहर के खाने के लिए घर आता और 2-3 घंटा घर बिताकर सोहन का खाना लेकर दुकान जाता, देवर-भाभी का हंसी-मज़ाक अपनी सीमा पार करने लगा था, ये दोनों शारिरिक संबध तक जा चुके थे, सीमा कैसे भूल गई कि मोहन सिर्फ उसका देवर नहीं है वो उसकी छोटी बहन गीता का पति है, एक बार भी ध्यान नहीं आया कि वो पाप नहीं, महापाप कर रही है, वो खुद नहीं समझ पा रही है कि उसका लगाव सोहन से ज्यादा मोहन कि ओर क्यों है,क्या ये हम उम्र वाला आर्कषण ( लगाव) है, क्योंकि सीता मोहन के साथ जितना खुलकर बात कर पा रही थी, उतना अपने पति (सोहन) के साथ नहीं, कारण जो भी हो, अर्नथ तो हो रहा था, सौ दिन की चोरी एक दिन पकड़ी जाती है, ससुर जी ने सीता और मोहन को गलत काम करते देख लिया, क्या बोले और किससे बोले, वो गीता की विदाई कराने चले जाते है,

रमेश जी......... आइये, समधी जी कैसे आना हुआ, सब ठीक तो है, एक साल होने को है, आप लोगों ने

                     सीता को भेजा ही नही,

समधी जी....... हां सब ठीक है, गीता की विदाई करना चाहते है,

रमेश जी........ अभी तो एक साल ही हुए है, और एक साल रहने देते, तब तक थोड़ी बड़ी हो जाती,

समधी जी....... रमेश जी, बात को समझिए, शादी के बाद, लड़का-लड़की को ज्यादा दिन अलग-अलग

                  ठीक नहीं होता, हम क्या बोले आप समझ सके तो ठीक है,

रमेश जी...... आप जैसा ठीक समझे, पंडितजी को बुला लेता हूं वो अच्छा दिन देख लेगे

( पंडितजी के हिसाब से,10 दिन बाद पूर्णिमा है, उस दिन गीता कि विदाई करा सकते है)

समधी जी, रमेश जी से विदाई लेते है, मोहन को भेज देगे, गीता को ले जाने के लिए..............

सोहन........ आ गये पिताजी, क्या हाल-चाल है वहां का,

पिता....... सब ठीक है, छोटी बहु ( गीता) के विदाई का दिन तय करके आ रहा हूं

सोहन........ इतनी जल्दीबाजी क्या थी,

पिता....... जरूरी था बेटा, मोहन को घर पर रहना पड़ता था, दुकान पर तुम अकेले परेशान हो जाते थे,

              गीता के आने के बाद, दोनों बहनें मिलकर काम संभाल लेगी,मोहन कहां है बुलाओ

मोहन....... जी बाबूजी, बोलिए

पिताजी....... गीता की विदाई कराने चले जाना, आज से 10 दिन के बाद वाला शुभ दिन है,

मोहन.......... जी,

'सब कोई अपने-अपने काम पर चले जाते है, अब देवर-भाभी के जुदाई का दिन आ जाता है, दोहपर में जब मोहन खाना खाने आता है तो भाभी से नाराज है, गुस्साते हुए, अब क्या होगा,

सीता......... मैं क्या करू, तुम्हारे लिए तो अच्छा है, नई दुल्हन मिलेगी,

मोहन....... मजाक नहीं, मैं उसके पास नहीं जाऊंगा,

सीता......... तो किसके पास जाओगे, देवर जी

मोहन.......... तुम मेरी हो,

सीता......... तुम्हारे भैया कि हूं,

मोहन.......... नाम के लिए,

सीता....... हमारे-तुम्हारे बीच जो है वो सही है या गलत, मैं नहीं जानना चाहती, पर गीता तुम्हारी पत्नी

             है, ये सच है, उसे तुम्हें पत्नी का हक देना होगा,

मोहन....... आज याद आ रहा है कि मैं गीता का पति हूं,

सीता......... जो कुछ भी हुआ, हम दोनों की नादानी थी, अब से कोशिश होगी, आगे ऐसी गलती न हो,

'वो दिन आ जाता है, जिस दिन मोहन गीता की विदाई कराकर अपने घर ले आता है, गीता सब बातों से अनजान खुश है, मां समान बड़ी दीदी के पास कोई दुःख नहीं होगा, दिन बितता है, मोहन गुस्सा है, अकेले सो जाता है, सीता (भाभी) उसे समझा-बुझाकर गीता (पत्नी) के पास भेजती है, वह पत्नी के साथ होते हुये भी अपनी भाभी को भूल नहीं पाता है,

5 साल बाद.........................

घर बच्चों से भरा है, गीता के एक बेटी और एक बेटा है, सीता दो बेटों की मां है, सब कुछ ठीक चलता है, भोली-भाली गीता कभी भी सीता और मोहन के हंसी-मजाक को बुरा नहीं समझती,उसे पता है कि देवर-भाभी में हंसी-मजाक होता है,उसके होश तो उस दिन उड़ जाते है जिस शाम वह सिर दर्द से परेशान लेटी होती है, दर्द असहनिय होने पर वह सीता के कमरे में दवा लेने चली जाती है, उस कमरे में सीता और मोहन को जिस रूप में देखा था, वह शर्म से बाहर चली आती है, अपने कमरे मेें जाकर बिस्तर पर गिर जाती और फूट-फूट कर रोती है, वह सपने में भी नहीं सोच सकती, उसकी दीदी,उसके सुहाग के साथ गलत संबध रख सकती है,

सीता बहन की नजर से गिर जाती है, गीता के मुंह पर ताला सा लग जाता है, वह घर के काम करती है पर उसकी खामोशी नहीं टुटती, मोहन से भी दिल से बात नहीं करती, उसकी खामोशी से देवर-भाभी पर कोई असर नहीं पड़ता, मोहन गीता को प्यार तो नहीं करता पर पति होने का रौब जरूर दिखाता है, शराब के नशे में गीता को शारिरिक और मानसिक चोट पहुंचाता है,सीता अपने पति के सामने, अच्छी पत्नी होने का, अच्छा नाटक करती है,

गीता अपने पति को समझाती है जो हुआ वो भूल कर हम फिर से अपनी जिंदगी की शुरुवात कर सकते है, हम अलग हो जाते है, नमक-भात खायेगे पर शांती से रहेगे, आप भी दिनभर दुकान पर काम करते है, फिर भी भैयाजी और दीदी हमेशा, हर बात का ताना देते रहते है, मोहन खामोश रहता है, उसकी खामोशी साफ-साफ बोल रही है वह अपने भैया-भाभी से अलग नहीं रहना चाहता है, वह बेचारी क्या करती, उसी चक्की में पिघती है,

दिन गुजरते है, उनकी शादी को 25 साल हो गये है, सीता की एक बेटी की शादी धूम-धाम से हो चुकी है, दो बेटे बाहर बढ़ते है, अब गीता की बेटी (अनु) बड़ी हो चुकी है, उसके पिता (मोहन) को रोज पीने से फुर्सत मिली तो सोचे, मां ( गीता) तो नाम के लिये जिंदा है, अनु के सपनों के बारे में कौन सोचे, अनु अपने मां-बाप से नाराज, हमेशा गुस्सा में रहती है, घर पर बड़ी मम्मी का राज चलता है, उनके बच्चों के लिए सब कुछ, पर गीता के बच्चों के लिए पैसे की कमी हो जाती है,

अनु......... रो रही है,

गीता......... क्या हुआ बेटी,

अनु......... सब आपके खामोशी के कारण,

गीता......... इतना गुस्सा ठीक नहीं, समझदार बनों,

अनु......... वह गुस्साते हुए, सोने चली जाती है,

'एक दिन घर के कुछ बच्चे स्कूल और कुछ बाहर गये हुये है, स्कूल में ही अनु की तबियत खराब होने से उसे छुट्टी मिल जाती है, वह घर चली आती है दोपहर के 2 बज रहे है, मम्मी ढेर-सारा बर्तन धोने में लगी है, वह छत के ऊपर वाले कमरे में आराम करने जाती है, दरवाजा खोलते ही एक ही बिस्तर पर बड़ी मम्मी और पापा को सोते देख अवाक रह जाती है, दौड़ती-भागती नीचे आकर मम्मी के कमरे में चली जाती, आधा घंटा बाद गीता वर्तन धोकर अपने कमरे में जाती है, अनु को विस्तर पर लेटकर रोते देखकर डर जाती है, उसे गले लगा लेती है,

गीता........ क्या हुआ अनु, तू स्कूल से घर कब आई,

अनु.........रोये जा रही है,

गीता........ कुछ हुआ है,

अनु......... तबियत ठीक नहीं था,

गीता........ मेरे पास सिर दर्द का दवा है, उसमें से खा ले,

अनु......... पापा कहां है,

गीता........ कही बाहर गये होंगे,

अनु........ झुठ क्यों बोल रही है, छत के कमरे में बड़ी मम्मी और पापा, एक ही बिस्तर पर,

गीता.......(अपना हाथ अनु के मुंह पर रखते हुए) चुप कर कोई सुन लेगा,

अनु.......... मैं चुप नहीं रहुंगी, बड़े पापा को बोल दूंगी,

गीता...... तू घर को बर्बाद करना चाहती है, बच्चें अनाथ हो जायेगे, न जाने कौन विधवा हो जाय,

अनु.......... ऐसा नहीं होगा, बड़े पापा बड़ी मम्मी को समझायेगे,

गीता....... तू पागल है, बड़े पापा का गुस्सा नहीं पता, वो खुद को मार डालेगे, या इन दोनों (सीता-मोहन)

              को मार देगे, इनकी ये गंदी हरकत आज कि नहीं है, तेरे दादाजी अपने अंतिम समय में मुझे

              इस बात को बताकर गये, उन्होंने मुझसे वादा लिया, इस घर का मान-सम्मान की रक्षा हर

              हाल में करना,जिस दिन मैं खामोशी तोड़ दूंगी, ये घर बिखर जाएगा, तू बोल मुझें क्या करना

              चाहिए,

"अनु और गीता, एक-दूसरे से गले लगकर जी भरकर रोती है"

                                                                                                                         Rita Gupta.