"प्यार" कभी कम नहीं करना

"प्यार" कभी कम नहीं करना
मैं पायल बहुत ही साधारण सी लड़की हूं, मुझे लोगों से मिलना-जुलना पसंद नहीं, अपने काम-से-काम रखती हूं, मेरी सहेलियॉ मुझे घमंडी के नाम से जानती है, क्या करू मैं खुद को बदलना चाहती हूं, पर चारों तरफ स्वार्थी और मतलबी दुनियां को देख उनसे दूर रहना पसंद करती हूं,
हर इंसान का दो रूप देख, डर लगता है, मुझे लगता है, दुनियाँ में आये है, तो हंसकर या रोकर जीना तो हर हाल में होगा, वो दिन भी आ जायेगा, जिस दिन इन सारे रिश्ते-नातों को छोड़, रब के पास जाना है,
मम्मी जो नौ महीने गर्भ में रखती है वो भी बेटा और बेटी में फर्क करती है, तो किसी और की क्या बात करे, मायके वाले, शादी नाम के रिश्तें में, किसी के साथ बांधकर, खुद को बेटी जैसे मुशिबत से मुक्त कर लेते है, हम बेटियाँ नासमझ होती है जो मम्मी-पापा के फर्ज को, उनका प्यार समझती है, तरअसल प्यार कहीं होता ही नहीं, सारे रिश्ते-नाते किसी-न-किसी स्वार्थ से जुड़ा होता है,
शायद इसलिए आज तक मुझे किसी से प्यार नहीं हुआ, लोगों से सुना है,14 साल की बाली उमर से 18 साल के बीच हर किसी को, किसी-न-किसी से प्यार हो ही जाता है, मैं तो 18 की हो चुकी, मुझे प्यार की अहसासो ने क्यों नही छुआ, हवाओं में सरगम क्यों नहीं सुनाई दिया, पानी में नशा क्यों नहीं, पेड़-पौधे हमसे बाते क्यों नहीं करते, इतनी खामोशी क्यों है मेरे अंदर,
क्या कुदरत ने मुझे इस काबिल नहीं समझा, क्या कोई नहीं ऐसा, जो मेरे प्यार में पागल हो और मैं उसके प्यार में, मेरी आंखे खुली हो या बंद , सिर्फ उसका चेहरा दिखे, इस अहसास से वंचित कर, कुदरत ने मुझे, मेरे किसी गलती कि सजा दी है,
मम्मी-पापा अपने फर्ज के अंतरगत, मेरी शादी तय कर देते है, मुझे लड़का का फोटो दिखाया जाता है, मेरी राय मांगी जाती है, जो कि खामोशी होती है, वो मेरी खामोशी को मेरी 'हां' समझते और शादी हो जाती है,ससुराल वाले बहुत अच्छे है, वो मुझसे खुश है, मुझे भी उनसे कोई शिकायत नहीं, देवता समान पति, मां-बाप जैसा सास-ससुर और बहन समान ननद, सब है मेरे पास, फिर भी मेरी खामोशी सबको परेशान करती है, मेरी सास बहुत ही समझदार महिला है, वो मेरी खामोशी को पढ़ पा रही है,
सासुजी......... बहू, तुम यहां खुश तो हो,
मैं......... हां मां, मैं खुश हूं,
सासुजी......... किसी बात की कमी हो तो कहो,
मैं......... सब ठीक है,
सासुजी......... फिर तुम अधखिली फूल की तरह क्यों लगती हो,
मैं......... मैं समझी नहीं,
सासुजी........ ऐसा लगता है, जैसे कोई फूल खिलते-खिलते रुक गया हो, वैसी तुम्हारी हंसी लगती है,
मैं...........नहीं तो,
सासुजी...... मैं तुम्हारी मां तो नही बन सकती पर मां से कम भी नहीं हूं, अपने दिल के बातो को बता
सकती हो, मैं तुम्हें खिले हुए फूल की तरह हमेशा खुश देखना चाहती हूं,
मैं.........पता नहीं मां, मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि कोई मुझे हद ज्यादा प्यार करता है,
सासुजी........ शादी को दो साल हो गये, मेरे बेटे से कोई शिकायत है, वो तुम्हें प्यार नहीं करता,
मैं......... बहुत प्यार करते है, फिर भी मुझे ऐसा लगता है, मानों वो अपना फर्ज पूरा कर रहें हो, मेरे लिए
उनमें दिवानापन नहीं दिखता,
सासुजी........ बहू, भानु पढ़ाई के साथ-साथ, अपने पापा के साथ मिलकर दुकान को भी संभालता है,
इसलिए हमेशा परेशान रहता है, तुम से शादी के बाद और जिम्बेवार बन गया है, मैं देखती
हूं उसके पापा से बात करके, तुम दोनों 15 दिनों के लिए कही घुमने चले जाओ,
मैं......... आप सब,
सासुजी.......नहीं बहू, सिर्फ तुम और भानु, हम सब फिर कभी जायेगे,
"हम दोनों के घुमने जाने के बारे में घर में चर्चा होती है, मुझसे पूछा जाता है कि कहाँ जाना चाहेगी, मैंने उनलोगों कि मर्जी पर छोड़ दिया, मेरे पतिदेव काश्मीर देखना चाहते है, इसलिए 15 दिनों की शुभ यात्रा की तैयारी शुरू हो जाती है, उन्होंने मुझसे कहा, साड़ी कम-से-कम रखना, सलवार-सूट ले लेना, हम सब बहुत खुश थे"
पहली बार भानु जी सिर्फ मेरे साथ कहीं जा रहे थे, हम दोनों काश्मीर पहुंचते है, मैं तो वहाँ के हसीन वादियों में खो गई, जहाँ देखों मन को मोह लेने वाले नजारें, सच में काश्मीर स्वर्ग के सुख का अनुभव करता है, वहाँ के निवासी सीधे-साधे और मिलनसार, बहुत ही अच्छा लगा, लगातार दो दिन घुमने के बाद हम थक चुके थे, तीसरे दिन हमनें होटल में आराम किया, शाम को पास के मंदिर में जाने को सोचा, हम दोनों मंदिर देखने चले गये, मंदिर थोड़ी ऊंचाई पर था, सीढ़ियाँ चढ़ कर जाना था,
भानु जी.......... तुम साइट से धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ो, मैं प्रसाद लेकर आता हूं,
मैं......... जी नहीं, मैं आपके साथ ही जाऊंगी,
भानु जी..... कुछ नहीं होगा, तुम धीरे-धीरे चलना, तब तक मैं आ जाऊंगा,
मैं........... जी, जल्दी आना,
मैं साइट से धीरे-धीरे चलने लगी और बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी, शायद वो दिख जाय, प्रसाद लेने की जगह भीड़ थी, इसलिए देर हो रही थी, मैं दो-तीन सीढ़ी चढ़ती फिर पीछे मुड़कर देखती, अचानक ऐसा लगा जैसे 440 volt का झटका लगा, मैं गिरने-गिरने हो गई, पर गिरी नहीं, किसी ने मेरे बायें हाथ को पकड़ लिया है,मैं इस तरह लटक चुकी थी कि मेरा सारा शरीर सीढ़ी से बाहर की ओर झुक चुका था, फिर मेरा ध्यान उसकी ओर गया जिसके हाथों में मेरा हाथ था, एक अजनबी मुझे खाई में गिरने से बचाये हुए, मेरी हाथ थामें हुए है, वो चुप-चाप मुझे देखे जा रहा है, मैं शर्म से नजरें झुकाये खुद को कैसे बचा पाऊ, उसके लिए मुझे उसकी ओर झुकना ( आना) होना, वर्ना वो भी मेरे साथ गिर सकता है,
मुझे बचाने के लिए वो मुझे अपनी ओर कर रहा है और मैं शर्म से खुद को उसके विपरीत, मेरे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करू, अपनी बांह छुड़ाती हुं तो सीधे खाई में गिरती हूं अगर खुद को बचाती हूँ तो उसकी बाहों में गिरना होगा, उस अजनबी को भी नहीं समझ में आ रहा कि क्या करें,
इस दृश्य को पास खड़े लोग देखते है तो चिल्लाना शुरू करते है......... भाई साहब, उन्हें अपनी ओर खीचें, उसने दम लगाकर मुझे खींचा, मैं सीधा उसकी बाहों में आकर डर से सिमट गई, 5 मिनट के लिए मैं भूल चुकी थी कि मैं कहा हूं, अचानक वहां खड़े लोग उनके हिम्मत को सराहा, तब तक मेरे पति जी आ गये, मैं सिर झुकाये रोये जा रही थी, मेरे पति को जब लोगों ने बताया कि उस अजनबी ने मुझे गिरने से बचाया है, उन्होंने उसे Thanks कहा,
वहाँ खड़े लोगों ने देखा, मेरे कलाई और अजनबी के हथेली से खून टपक रहा है, देखने से पता चला कि जब उन्होंने मुझे बचाने के लिए, मेरी कलाई थामी थी, तभी मेरे कांच की चुड़ियाँ टुटकर मेरे कलाई और उनके हथेली में चुभ चुकी थी, पास के दवा दुकान में दोनों के चोट की मरहमपट्टी की जाती है, मेरे पति और अजनबी के बीच थोड़ी-बहुत बाते होती है, उसके बाद वो अपना विजिटिंग कार्ट देते हुए, हम दोनों से विदा लेता है,
हम दोनों मंदिर नहीं जा पाये, अपने होटल में, आराम के लिए लौट आये,दूसरे दिन हम दोनों शाम को, उस मंदिर में पूजा देने जाते है, फिर से उसी जगह को देख मुझे वो सारा नजारा आंखों के सामनें आ जाता है, तब समझ में आया कि मैं कल गलत साइट से सीढ़ी चढ़ रही थी, तभी यह घटना हुआ, हम पूजा कर बाहर घुमने निकल जाते है, काश्मीर में देखने योग्य बहुत से स्थान है, उसके दो दिनों तक हम जम्मू चले गये, वहाँ भी घुमें फिर होटल लौट आते है,
एक दिन,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मैं.......... ये जी, आपने उस अजनबी को फोनकर के पूछा नहीं, कि उसका जख्म कैसा है,
भानु जी........ पूछना क्या है, उस दिन thanks तो बोल ही दिया था,
मैं.......... फिर भी, वह अपना कार्ट आपको दिया है, एक बार पूछ लेते,
भानु जी........ जरूरत नहीं,
मैं चुप रह गई, जब भी मेरा ध्यान अपनी कलाई पर जाता, उस अजनबी का चेहरा मेरी आंखों के सामनें होता, लगभग छः फुट लम्बा, सांवला रंग, नशिली आंखे, बाजुओं में असीम ताकत और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान, ऐसा लग रहा था, मानों आंखे और होठ बहुत कुछ कहना चाह रही हो, पर खामोश है, उसकी याद आते ही मैं शर्म में पड़ जाती हूं, खुद को फिर से उसकी बाहों में महसूस कर लेती हूं, मैं आंखे बंद कर लेती, तो भी वह दिखता, आंखे खोलती तो भी उसे महसूस करती, मेरे समझ के बाहर था कि मुझे हुआ क्या है, मैं सोच में पड़ गई,
"दादी से सुनी थी अगर 'कोई' हमें बहुत याद आ रहा है, इसका मतलब वो भी 'हमें' याद कर रहा है, तब हमें हिचकी आती है"
मुझे लगा वो अजनबी भी मुझे याद करता होगा और सोचता होगा कि कितने मतलबी लोग है, एक बार फोन करके ये भी नहीं पूछा कि मेरी हथेली का जख्म कैसा है, मेरी इंसानियत मुझसे कहती है, जिस इंसान ने मुझें बचाया है, उसे एक बोलना चाहिये,इंसानियत के नाते मैं, अपने पति से छिप कर उनके पर्स सें अजनबी का विजिटिंग कार्ट निकाल लेती हूं, तब जाकर मुझे पता चला कि उस भले मानुष का नाम 'दिवाकर' है, जो रेलवे में इंजीनियर के पोस्ट पर विराजमान है, भानु जी जब पान खाने और मेरे लिए ' ice-cream ' लाने होटल से बाहर जाते है, तो डरते-डरते, हिम्मत जुटाकर, दिवाकर को फोन लगा देती हूं,
दिवाकर........ Hello, कौन
मैं............( डर से) चुप
दिवाकर........ Hello, कौन
मैं............ जी, मैं
दिवाकर....... मैं कौन, कुछ तो आपका नाम होगा,
मैं............ जी नाम तो है, पर आप नाम से मुझे नहीं जानोंगे,
दिवाकर....... तो बोलियें, क्या काम है,
मैं.......... आपको Thanks बोलना था,
दिवाकर...... अच्छा, पर किस बात का thanks,
मैं.......... आपने मेरी जान बचाई,
दिवाकर...... मैंने,
मैं.......... जी, आपके हथेली का जख्म कैसा है,
दिवाकर...... अच्छा, मैडम जी आप,
मैं.......... बोलिए ना, जख्म कैसा है,
दिवाकर.......... आप बोलती भी है, उस दिन आपकी आवाज सुना ही नहीं, न जाने क्यों रोये जा रही थी,
मैं.......... डर से,
दिवाकर........ किसके डर से,
मैं.......... क्यों डर नहीं लगता, गिर जाती तो,
दिवाकर........ गिरती कैसे, मैं जो थामें हुए था, मैं आपको कैसे गिरने देता,
मैं........... सच में आप नहीं बचाते तो मेरा मरना पक्का था, ये जिंदगी आपकी देन है,thanks.
दिवाकर........ जान बचाने के बदले केवल thanks.
मैं........... तो और क्या,
दिवाकर........ मेरी दोस्त बन जाओं,
मैं.......... दोस्त,
दिवाकर........ जी,
मैं.......... पर, मेरे पति को पता चला तो
दिवाकर........ उनको मत बताना, हम दोस्त है,
मैं.......... पर,
दिवाकर........ दिल से thanks बोलना चाहती हो, तो दोस्त बन जाओ, वर्ना thanks तो बोल दी हो,
मैं........ आप फोन करोगे तो, मैं सबके सामने, आपसे कैसे बात करुगी, क्या बोलुगी किसका फोन आया,
दिवाकर....... आप जब भी अकेले में होना, मुझे missed call करना, मैं call back करूगा, फिर हम बाते
करेगे, मुझसे डरो मत, मैं भी शादी-शुदा हूं हमारी शादी को एक साल हो गये, मैं आपको
परेशान नहीं करूगा, हम सिर्फ दोस्त रहेगे,
मैं........ जी,
दिवाकर....... जी का मतलब हॉ समझू,
मैं........ जी,
दिवाकर....... मुझे इंतजार रहेगा, तुम्हारे missed call का,
मैं........ अब by.
दिवाकर.......by dost.
By करने के बाद, जिस तरह एक चोर चोरी करके, अपने सारे सबुतों को मिटाता है, मैं भी विजिटिंग कार्ट को उनके पर्स में, पहले की तरह रख दिया, दिवाकर जी का फोन नम्बर किसी लड़की के नाम से save कर दिया, दिल की तेज धड़कन को शांत करने के लिए, एक गिलास पानी पी, तब तक मेरी मां का फोन आ जाता है,
मैं........... प्रणाम 'मां' कैसी है आप,
मां......... मैं तो ठीक हूं, तुम कैसी हो,
मैं........... ठीक हूं, सब ठीक है,
मां......... कब से तुम्हें फोन लगा रही हूं,busy बता रहा है, किससे बात कर रही थी,
मैं........... किसी से नहीं, मैं तो लेटी थी, फोन का क्या है, कुछ भी बोल देता है, और बोलो,
मां.........भानुजी कैसे है,
मैं........... आपके दामाद जी ठीक है, मेरे लिए ice-cream लाने गये है,
मां........कितना परेशान करती है उन्हें, इतने ठंड में भी तुम्हे ice-cream चाहिए,
मैं......... जी मां, लौटने पर आपसे मिलने आऊंगी,
मां........ ठीक है, फोन रखती हूं,
मैं.........जी मां,
तब-तक भानु जी आ जाते है, मैं बहुत खुश थी, वो मुझे देखकर ख़ुश थे, ये सोचकर की काश्मीर आकर मैं उनके साथ इतनी खुश हूं, यहाँ आये 7 दिन बित चुके थे,7दिन बाद हमें अपने घर लौटना था, बाकी के 7 दिनों में बहुत घुमना था, दिन-भर हम दोनों यहाँ-वहाँ घुमते, भानुजी मुझे इतना प्यार करते है, मुझे नहीं पता था, एक-दूसरे के साथ बहुत खुश थे,
रात होते ही, न जाने क्यों, मेरा दिल दिवाकर जी की प्यारी-प्यारी बाते सुनने के लिए बेचैन हो जाता, सिर्फ 10 मिनट उनसे बात होती, और दिल को सकून मिलता, हम बात में एक-दूसरे की तारिफ करते, हंसी-मजाक करते, कभी-कभी लड़ाई भी कर लेते, मेरे समझ में ये नहीं आ रहा था, कि मैं उस इंसान से इतना हिल-मिल कैसे गई, इतनी निडर होकर बात करती हूं, जैसे मैं उन्हें बचपन से जानती हो, आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ, जो अब हो रहा था, उन्होंने मेरी दोस्ती को प्यार समझ लिया और एक दिन I love you jaan बोल दिया, मैं बहुत हंसने लगी, मैंने कहा ऐसा मजाक अच्छा नहीं,उन्होंने कहा, मजाक नहीं सच बोल रहा हूं मुझे तुमसे प्यार हो गया है, तुम्हें भी मुझसे प्यार है, जिसे तुमने दोस्ती का नाम दे रखा है, एक बार अपने दिल की सुनों, सच जान जाओगी मैं गुस्सा से फोन काट देती हूं,
दूसरे दिन की रात, मैं खुद को समझाती हूं कि शायद मैं गलत कर रही हूं, मुझे किस बात की कमी है, मेरे पति मुझे बहुत प्यार करते है तो मुझे दिवाकर जी की प्यारी-प्यारी बातों की क्यों जरूरत पड़ती है, शायद ये दिल की जरूरत है, कहते है ना " Dil maange more "मैंने फैसला किया ,मुझे दिल की नहीं सुननी, मैनें फोन नहीं किया,
तीसरे दिन की रात, जब उनका फोन आता है तो मैं खुद को रोक नहीं पाई, फोन उठा लेती हूं, हम फिर से बात करना शुरू कर देते है, काश्मीर में बचे हुए 5 दिनों के, 50 मिनट के बातों में मैंने खुद को दिवाकर जी की प्यारी-प्यारी बातों के हवाले कर दिया, क्या सही, क्या गलत मुझे नहीं पता, फोन पर ही हमारी दोस्ती हुई, दोस्ती प्यार में बदल गया, प्यार को नया रूप और नाम देने के लिए, खुद को पति-पत्नी मान लेते है, और प्यारी सी बेटी भी होती है जिसका नाम, दिवाकर का दि, पायल का पा, मिलाकर दिपा बनाते है, हम दोनों पागल की तरह खाबों में जीने लगे, सिर्फ फोन पर बात कर हमारी बेटी भी हो गई, जो दिपा नाम से जाने जाने लगी,
मैं दिवाकर को दिपा के पापा जी, वो मुझे दिपा की मम्मी बोलते, हम दोनों का ऐसे कल्पनाओं की दुनियां में रहना बचपना था या पागलपन,क्योंकि हमारी नियत बिल्कुल साफ थी, सिर्फ हम फोन पर ऐसी बाते कर खुद को खुश करते, कहाँ मैं काश्मीर में, कहाँ वो लंदन में, हमारे बीच ये क्या हो रहा था, हमें नहीं पता,
काश्मीर में हमारी आखिरी रात,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
दिवाकर.......... कैसी हो जान,
मैं............ ठीक हूं, एक बात है,
दिवाकर......... बोलों जान,
मैं............ कल से हम बात नहीं कर पायेंगे,
दिवाकर......... क्यों बाबु,
मैं............ हमारा घुमना समाप्त हुआ, कल सुबह अपने घर चले जायेगे, कल रात ट्रेन में रहूंगी,
दिवाकर...... ठीक है, कल रात रहने दो, उसके बाद हम रोज बात करेंगे,
मैं............ नही, होगा,
दिवाकर...... . क्या नहीं होगा, पागल हो, तुमसे बात किये बिना मुझे नींद नहीं आती,
मैं............Sorry, मैं कुछ नहीं कर सकती, वहाँ मैं ससुरालवालों के बीच रहूंगी, बात नहीं कर सकती,
दिवाकर...... नाटक बंद करो, मै फोन करूगा,
मैं........Plz मत करना, मैं बात नहीं करूगी,
दिवाकर...... सोच लो, मना कर रही हो, तो फिर तरस जाओगी, मेरी आवाज सुनने को, मैं कभी फोन नही
करूगा, तुमको मुझे सताने में अच्छा लगता है,
मैं......... दोस्त, मैं क्या सोचु, वक्त ने हमारे साथ, खेल खेला है,7 दिनों में सिर्फ फोन के माध्यम से
एक-दूसरे को इतना करीब ला दिया, कि आज जुदाई के नाम पर रुलाई आ रही है,
दिवाकर....... मैं कभी-कभी फोन करूगा, फोन उठा लेना,
मैं......... ठीक है,
दूसरे दिन सुबह ,भानु जी और मैं अपने घर को रवाना होते है, जब हम घर पहुंचते है, सबके साथ मिलकर बहुत अच्छा लगा, जो मुझे देखता, वो ही कहता, मैं बदल गई हूं, चुप-चाप रहने वाली पायल को छनकना आ गया, अब जाकर नाम की सार्थकता हुई,
3 दिन इंतजार के बाद, दिवाकर जी ने फोन कर दिया, मैं फोन लेकर रसोईघर में चली गई,2 मिनट बात करके, फोन काट दिया, उन्हें बहुत बुरा लगा पर मैं क्या करती, मैं उन्हें कोई सही समय बता नही पा रही थी ,जब उनसें बहुत सारी बातें कर सकू ,ना ही उनके फोन आने पर उनके मनपसंद बात करती, मैं साधारण सी बाते कर by कर देती, मेरे ऐसे व्यवहार से वो नाराज़ रहने लगे, मैं सोची.....चलों अच्छा है मुझसे नाराज रहते-रहते, एक दिन मुझे भूल जायेगे, यही सही है हम दोनों के लिए, फिर भी मेरी यादें जब उन्हें बेचैन करती, भूले-भटके किसी दिन उनका फोन आ जाता था,
एक दिन मैं दोपहर के समय रसोई घर में बर्तन धो रही थी, फोन मेरे बेडरूम में था, घर में मैं और सासुजी, मुझे काम करते देख, फोन रींग होने पर उन्होंने फोन उठा लिया,
दिवाकर...... कैसी हो जान, कभी तो तुम फोन किया करो, चुप क्यों हो, नाराज हो, अब मैं तुम पर गुस्सा
नहीं करूगा,जानू कुछ तो बोलो,
सासुजी...... बिना कुछ बोले, फोन मेरे हाथ में पकड़ा देती है,
मैंने जैसे ही फोन को कान से लगाया, दिवाकर जी की आवाज सुनकर आवाक् रह गई, झट से फोन काट दिया, ध्यान से फोन देखने पर पता चला कि 2 मिनट पहले से फोन चालू था, मैं समझ गई कि सासुजी कुछ तो जान चुकी है,मेरे आंखों में आंसू की जलधारा चालू,
साजुजी........ क्या हुआ, क्यों रो रही हो,
मैं........... मुझे माफ कर दे, मुझसे गलती हो गईं,
साजुजी........ कौन था,
"मैंने उनसे कुछ नहीं छिपाया, शुरू से अंत तक सारी बाते उनके सामने दिल खोलकर बोल दी और जी भरकर रोई"
सासुजी....... चुप हो जाओ, बहू इंसानियत के नाते, तुम्हारा बढ़ाया हुआ कदम, तुम पर भारी पड़ा, थोड़ी
गलती तो तुम से भी हुई है, इतने नादानी ठीक नहीं,
मैं.......... आप मुझे माफ़ कर दे, भानु जी से कुछ नहीं बोलना, वर्ना मैं उनकी नजर से गिर जाऊंगी,
सासुजी..... नहीं बहू, भानु को कभी नहीं बोलुगी, मानती हूं कि मैं उसकी मां हूं, उससे पहले एक औरत हूं,
औरत होने के नाते एक औरत की 'दिल की भावनाओं' को समझ सकती हूं,
मैं......... मां,Sim card निकाल कर फेंक दो, मुझे अब किसी से कोई बात नहीं करनी,
सासुजी....... उसकी जरूरत नहीं, मुझे मेरी बहू पर पूरा विश्वास है,
मैं.......... मां आप बहुत अच्छी हो, आपने मुझे माफ किया,
सासुजी....... तुमने मुझसे जो कुछ कहा, मैं भूल गई, तुम भी बीती बातों को भूल जाओं, मेरे दिल में
तुम्हारे लिए वही प्यार है,
मैं.......... माँ " प्यार कभी कम नहीं करना "
Rita Gupta.