मां (एक अलग रूप में)

मां (एक अलग रूप में)

"माँ" शब्द भी मां के समान पूज्यनीय है, सारी दुनियां स्वार्थी हो सकती है पर मां नही,सबसे बड़ा सुख है अपने बच्चे के मुख से' माँ 'सुनना, इसपर स्वर्ग का खुश भी निछावर है, ये बात हमसब जानते है पर , मेरी ये कहानी मां के एक अलग रूप को दर्शती है, सच को सामने रखना, मेरा उद्देश्य है, किसी के दिल को ठेस लगे तो क्षमा करे,

जब मैं कक्षा चौथी की छात्रा थी, हम सब कम-से-कम 4-5 सहेलियां एक साथ स्कूल जाती, आते-जाते कभी-कभी, एक पागल को देखते थे, लगभग वह 30-35 साल का होगा, वह किसी को किसी प्रकार का नुकशान नही पहुंचाता, फिर भी सभी बच्चें उससे डरते, वह इतना खामोश रहता कि मैं उसकी खामोशी से परेशान हो जाती, बचपन से ही मुझे, खामोशी बिल्कुल नही भाती, अगर आप नाराज हो तो गुस्सा कर लो पर खामोश मत रहो,

उसकी खामोशी को तोड़ने के लिए, हम सब बच्चें उसे पागल बोलते, वो गुस्सा कर हम सबकी तरफ देखता, क्या गर्मी, क्या सर्दी हमेशा एक चट (बोरा) को कमर में लपेटे और एक चट को कांधे पर रखें, रास्ते में कभी-कभी दिख जाया करता था,

मेरी एक सहेली ने कहा...... जानती है, मेरी मां बोल रही थी कि उस पागल से नही लगना, भूलकर भी

                                    उसके सामने 'मां 'मत बोलना,

मैं.......... क्यों, मां क्यों नही बोलना,

सहेली........... देख मेरी मां ने मना किया, क्यों मना किया नही पता,मैं उसके सामने नही जाऊंगी, ना

                   कभी उसके सामने मां बोलुगी,

" मैं सोच-सोच कर परेशान कि' मां ' बोलने से भी किसी को गुस्सा आता है, एक बार बोलकर देखे"

एक दिन हम सब स्कूल से लौट रहे थे, और वो पागल रास्ते के उस तरफ से जा रहा था, मैनें सहिलयो से कहा....... चल ना, उसके सामने जाकर मां बोलते है, सब गुस्साने लगी, किसी ने मेरा साथ नही दिया, पर मैं तो जिंदी, जब ठान लिया कि एक बार बोलकर तो देखना ही है, तो फिर आज क्यों नही, हिम्मत करके रास्ते के उस तरफ उसके थोड़ा सामने गई और दो बार मां-मां बोल दिया, वो इस तरह गुस्साया कि मैं डर गई फिर भी एक बार मां बोल दिया,

गुस्सा से वो मुझ को मारने के लिए दौड़ा दिया, मैं पूरे दम लगाकर दौड़ चली, मैं आगे-आगे और वह पीछे-पीछे, मेरी दौड़ ऐसी, जैसे कोई हिरन शेर के दौड़ाने पर भागती है, भागते-भागते मैं चाय के दुकान के पास गिर गई, जहां कचड़ा जमा था, मैं उठी और दौड़ फिर चालू,सीधे अपने घर के सामने वाली गली के पास रूकी, जहां मेरी दादी मेरा इंतजार कर रही थी,

दादी मुझको इस हालत में देख कर परेशान, दोनों घुटना के पास से खून बह रहा था, कांच भी गड़ा हुआ, जब चाय के दुकान के पास गिरी थी तभी कांच गड़ गया होगा, मैं दादी के बांहो में छिपकर बहुत रोने लगी, पीछे से मेरी सहेलियां आयी, उन्होंने दादी से मेरे कारनामे को बता दिया,

घर जाकर दोनों घुटनों पर दवा लगी, टिटनेस की सुई लगी, हालत ऐसी कि रात में 103 बुखार, तेज बुखार में भी मैं सिर्फ यहि बोल रही थी, मां बोलना गलत नही........... दादी सीने से लगाकर सो गई, पता नही कब नींद आ गई, सुबह में भी बुखार कम होने का नाम नही, दो दिन स्कूल नही गई,

जब मैं ठीक हुई तो दादी से पूछा.......

मैं.......... दादी, मां बोलना गलत है,

दादी........नही,

मैं........... तो मैंने, उसके सामने मां बोला तो वो गुस्साया क्यों,

दादी............तु अभी बच्ची है, नही समझेगी,

मैं.............. दादी मुझे जानना है, वह क्यों गुस्साया,

दादी.........वह पागल नहीं है,B.A पास अच्छे घर का लड़का है पर कुछ ऐसा हुआ कि वह ऐसा हो गया,

मैं............... दादी, ऐसा क्या हुआ,

दादी.........वह अपने मम्मी-पापा का तीसरा संतान है, उसके दो बड़े भाई है, जो अच्छी नौकरी करते है,

               पर यह नौकरी नही ले पाया,

मैं...........पढ़ने में ठीक नही होगा,

दादी........पढ़ने में दोनों भाई से तेज है पर नौकरी की परीक्षा नही निकाल पाया, जिसके कारण घर में

              उसकी गिनती बेकार और बेरोजगार में होती है, भाइयों के साथ खाना खाने बैठने नही मिलता,

              उसकी मां कहती....., तुम्हें तो घर पर ही रहना है पहले भाइयों को खाना खाकर ऑफिस जाने

              दो, फिर तुम खाना,वो भी यही सोचता जाने दो, मैं बाद में ही खाऊंगा, बाद में खाने के कारण

              उसके भोजन के थाली में अक्सर कुछ-न-कुछ कमी रहती,जब मां से सब्जी या कुछ और

              मांगता, तो मां कहती, जो मिला है खाकर उठ जाय, वो भी मां कि बातो का बुरा नही मानता,

मैं.......... लगता है, वह नौकरी नही करता था इसलिए उसकी मां उससे प्यार नही करती थी,

दादी........सच तो यहि था, दोनों बड़े बेटे कमाते थे, मां के हाथ में रुपये देते, मां को उनपर प्यार आता, ये

               छोटा बेरोजगार, इसके लिए मां का प्यार भी नही बचता था,

 

एक दिन उसने अपनी आंखो से देखा.................................

जब दोनों भाई खाना खाकर उठ गये तो उनके छोड़े गये जुठन को, मां दुसरी थाली में सजाकर और थोड़े से ऊपर से खाना डालकर, उसको आवाज लगाती है, आकर खाना खा जाय, मां को पता नही कि वह वहि खड़ा दरवाजे के पास से सब देख रहा था,

मां के आवाज लगाते ही वो कहता है..... मैं यहि हूं,

मां अवाक रह गयी,कहि उसकी ऐसी हरकत को बेटे ने देख तो नही लिया, वो अनजान बनते हुए कहती है, खाना परोस दिया है, ले जा खा ले,

वो( बेटा)........ मां मेरी भूख मर गई, ये आपने क्या किया, जूठन को दूसरी थाली में सजाकर दिखावा

                   करने की क्या जरूरत थी, भाई खा लेता, फिर आप बोलती तो मैं भाई के थाली में ही खा

                   लेता, वो मेरा भाई है, भाई के जूठन खाने में कोई बुराई नही पर आपने, आज तक मेरे साथ

                   प्यार का दिखावा किया, अब किसी दिखावे कि जरूरत नही, मैं बेरोजगार इसी काबिल हूं,

दादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

वह खाना छोड़कर अपने कमरे में जाकर, खुद को बंद कर लिया, पूरा दिन बीत गया, रात बीत गई, पर वह दरवाजा नही खोला, मम्मी-पापा, भाई सब बहुत मनाते है तो दुसरे दिन सुबह में दरवाजा खोलता है, खुद को 24 घंटे बंद कमरे में, मन के मंथन से, क्या निर्णय लिया, यह तो उसे ही पता होगा, बंद कमरे से बाहर आने पर उसके एक नये रूप को देखकर सभी की बोलती बंद,

राजकुमार की तरह लगने वाला और हंसने-हंसाने वाला लड़का, एक पुराने शर्ट-पैंट में, खामोश खड़ा है, घरवाले उसे देख अवाक रह गये, सब ने कितने. सवाल किये, मां अपनी गलती के लिए माफी मांगी, वह ऐसा खामोश हुआ कि मानों सुनाई ही नही देता, उस दिन से घर और घरवालों से नाता नही रहा, हम सब 10 साल से इसे इसी रूप मे देख रहे है, कभी भी किसी को, किसी प्रकार का नुकशान नही पहुंचाता,

मैं........" दादी गलती मेरी है,मुझे नहीं पता था कि उसकी मां ने, उसके दिल को दुःखाया

                 है, अब मैं कभी भी उसे परेशान नही करूगी”

    

                                                                                    Written by

                                                                                          Rita Gupta