अकेलापन

अकेलापन

अकेलापन एक डरावना सच है, इससे बचने के लिए, ज्ञानी महापंडितों ने बहुत से, सामाजिक रीती-रिवाजों, पूजा-पाठ बना रखा है, शादी, जन्म, मरण, इत्यादि हर एक मौके पर इंसान को इंसान की जरूरत पड़ती है, ऐसे मौको पर वह खुद को सबके साथ महसूस करता है,

हमेशा ऐसा नहीं होता, कभी-कभी मेले में भी हम खुद को अकेले पाते है,

"भीड़ है कयामत की, फिर भी हम अकेले है"

अनामिका ऐसी लड़की है जो सपने देखने की आदी है, वह सपने में देखती है कि वह अपने दोनों हाथों को पंख के समान फैलाये, नीले आसमान में उड़े जा रही है, जैसे कोई बाहें फैलाये उसका इंतजार कर रहा हो और वह उसकी ओर चले जा रही है,

अचानक आँखों के सामने अंधेरा छा जाता है और वह गिरना शुरू कर देती है, नीले आसमान से गिरते-गिरते अकस्मात उसकी नींद खुल जाती है, वह डर से पास सोये हुये मां की बाहों को जकड़ लेती है, मां की नींद खुल जाती है............ क्या हुआ, क्यों डर गईं,

अनामिका........... मां मेरा हाथ कभी नहीं छोड़ना, मुझे अकेलेपन से डर लगता है, मैं हमेशा आपके साथ

                        रहना चाहती हूं,

मां...........11 साल की अनामिका को प्यार से सुला देती हैं(वह सो जाती है)

'धीरे-धीरे वह बड़ी होती हैं पर अकेलेपन के डर से हमेशा, उसे किसी के सहारे कि जरूरत है, बचपन में मम्मी-पापा, स्कूली जिंदगी में भाई-बहन, शादी के बाद पति और बच्चों के साथ की जरूरत रही, सबकी खुसी में खुस होना, सबके दुःख में दुःखी होना, उसकी अपनी कोई चाह नही, मानों चांबी से चलने वाली गुडियां हो, वो सबकी जान है पर उसकी कोई पहचान नही, उसे लोगों ने नही पहचाना या उसने खुद को नही पहचाना,

हमेशा अपनो के बीच रही फिर भी उस सपने ने पीछा नही छोड़ा, अभी भी, कभी-कभी उसी सपनों में खो जाती है पर बाहें फैलाये हुए उस अजनबी का चेहरा आज भी धुंधला है,

"कौन है 'वो' जो अनामिका के हौसले को उड़ान देना चाह रहा है, क्यों नीले आसमान की ओर अजनबी बनकर बाहें फैलाये उसे उड़ने के लिए बाध्य कर रहा है, शायद सिर्फ उसे ही पता है कि अनामिका में उड़ने की कला है, वह गिरने के डर से उड़ना नही चाहती"

अनामिका आज उम्र की उस पड़ाव पर है, जहां अकेलापन महसूस कर रही है,जिंदगी के उधेड़-बुन में लगी है, क्या खोया और क्या पाया इस सोच मे डुबी, एक कमरे मे चुपचाप खोई है,

बंद आंखों का सपना, आज खुली आंखों के सामने होने जा रहा है, कमरा नीले बादलों से भर गया, जिस अजनबी चेहरे को देखने के लिए, उसकी आंखें बेचैन थी, वो आज साफ-साफ दिख रहा है, एक बिन्दु मात्र है जिसके चारों ओर प्रकाश कि किरणें फैली हुई है, किरणों से बनी दो बाहें अनामिका को बुला रही है,

अनामिका......... आप कौन हो, मुझे क्यों बुला रहे हो ?

अजनबी..........मैं ज्ञान हूं, तुम्हें कब से बाहें फैलाये बुला रहा हूं,

अनामिका........ ज्ञान, कहां जाना है  ?

ज्ञान.............. इस मोह-माया की दुनियां से दूर, मेरे साथ चलो,

अनामिका........ लगता है, अब मेरी मौत होने वाली है,

ज्ञान........ . नहीं, तुम समझी नही, इस नश्वर शरीर को यहि रहने दो, अपने मन की उड़ान से, मेरे साथ

               नीले आसमान में,बाहों के पंख फैलाकर, दिल खोलकर उड़ो, डरती क्यों हो मैं हूं न, आज तक

               अपनों के लिए जी रही थी, अब खुद के लिए जीना सिख जाओ, कल्पना की उड़ान से वो

               सबकुछ पा सकती हो, जिसकी तुम हकदार हो,

अनामिका........ ऐसा नही होता, हम सामाज में रहते है, यहां जीवन-यापन के कुछ कायदे-कानून है,

ज्ञान............. सारे नियम-कानून मानव शरीर के लिए बने है, मन के उड़ान को कोई नही बांध सकता,

अनामिका......... आपकी बाते मुझे भ्रमित कर रही है,

ज्ञान........... मेरी आंखों से देखो, इस लड़की को जो कुछ दिन पहले फांसी लगा रही थी, मैंने उसे उड़ना

                 सिखाया, देखो आज सैकड़ो मुश्किलों में भी वो कितनी खुश है, उसे कभी लोग' करमजली '

                 के नाम से बुलाते थे, उसकी मां ने उसे फुटपाथ पर जन्म दिया था, उसके जन्म के छः  

                महिनें बाद उसके पापा की मौत हो गयी, उसे स्कूल का मुंह देखना नसीब नही हुआ, फुटपाथ

                पर ही बचपन से जवान हो गई,लोगों की बुरी नजर से डर-डर कर रहती थी, दुनियां का दस्तूर

                 है आप जितना डरोगे, ये उतना ही डरायेगी, इस जिंदगी से परेशान होकर आत्महत्या कर

                 रही थी, तब मैंने उसका परिचय उससे करवाया, आज उसमें वो हिम्मत है कि किसी से न

                डरते हुए, मेहमत कर दो वक्त का खाना खाती और मां को खिलाती है, अपने सपनों के

                दुनियां में खुश रहती है,

अनामिका............ कैसे सपने,

ज्ञान............ गरीब होने से क्या हुआ, उसके सपनों का राजकुमार उसे बहुत प्यार करता है, सपनों में वो

                   महल की रानी है, उसकी दुनियां में दुःख के लिए कोई जगह नही, आज लोग उसका

                   मुस्कराता हुआ चेहरा देखकर, खुशी के नाम से बुलाते है,

अनामिका........ सच में बहुत खुश दिख रही है, उसका चेहरा दुःख भरी कहानी नही बया कर रहा, आपने

                      कहा. तो मैं जान सकी कि उसने कितने दुःख देते है,

ज्ञान......... जीने के लिए, किसी-न-किसी नशे की जरूरत पड़ती है, जैसे कि..... कामयाबी का नशा,

               भक्ती का नशा, मान-सम्मान पाने का नशा, दौलत का नशा, प्यार का नशा, इत्यादी. पर गम

               पीने का नशा, सब नशा से ज्यादा नशिला है, इस नशे से दुसरे को खुशी दिया जाता है, किसी

                को किसी प्रकार का कोई नुकशान नही होता,

अनामिका...... ये बात सही कहा, अगर हम किसी को खुशी नहीं दे सकते, तो कम-से-कम गम तो न दे,

ज्ञान........... वादा करो,तुम कभी भी, खुद को अकेली नही समझेगी, जी लो अपनी जिंदगी, पा लो अपने

                 हिस्से का आसमान, नीले आसमान में उड़ कर देखो, दुनियां बहुत ही रंगिन है, मानों यहां

                 दुःखी की कमी नही, पर खुशियां भी कम नही,

अनामिका.......... वादा किया, दोस्त ( ज्ञान )

                                                                                                         Written by

                                                                                                              Rita Gupta.