बना दिया ना 'अपने जैसा '

बना दिया ना 'अपने जैसा '

आम के पेड़ में आम और बबूल के पेड़ में बबूल ( काँटा) ही होता है, जैसा बीज-वैसा पौधा, ऐसे तो बच्चे माता-पिता के प्रतिबिम्ब होते है पर हमेशा ऐसा नही होता, हम इंसानों में, अनपड़ मां-बाप के बुद्धिमान बच्चे और संत स्वभाव वाले माता-पिता के घर में शैतान बच्चे हो सकता है,

मैं 'नीता' अपने पड़ोसी से इतना परेशान और चिंतित हूं, समझ में नहीं आता कि उनका क्या किया जाय, उनके घर का 'कलह' रोज का सिरियल हो चुका है, 5 साल पहले जब वो पड़ोस में रहने आये थे,

मम्मी-पापा और उनकी बेटी प्रीति, छोटा और पढ़ा-लिखा, अगर पड़ोसी समझदार और नैतिक वाले हो, तो दिल खुश हो जाता है, हम सब भी खुश थे, चलो ,पड़ोस में एक सम्य परिवार अपना घर बना रहा है,

कुछ दिन बितते है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

एक दिन उनके घर झगड़ा होता है, यह झगड़ा प्रतिदिन का झगड़ा में बदल गया, कारण समझ से बाहर, मात्र तीन लोग,पति-पत्नी और बेटी रोज क्यों लड़ते है, ऐसे तो झगड़ा छोटी-छोटी बातों पर शुरू हो जाता, जैसे... खाना मनपसंद नहीं, कामवाली दो दिन बाद आती है तो उसके साथ शुरू, कोई मेहमान आने वाला है तो उस बात पर आपस में झगड़ा, पता लगाने से, पता चला कि झगड़ा का मुख्य कारण कुछ और है,

उनकी बेटी प्रीति को जिस लड़के से प्यार है, वह लड़का उसकी मम्मी को नापसंद है, प्रीति यह सिद्ध करने में लगी है कि मोहित उसे बहुत प्यार करता है, वह उसके साथ खुश रहेगी, क्या हुआ वो बेरोजगार है तो, नौकरी की कोशिश तो कर रहा है, आज नहीं तो कल कुछ तो करेगा, उसका स्वभाव मुझे पसंद है,प्रीति की मम्मी, अपनी एकलौती बेटी का ब्याह, एक बेरोजगार लड़के से करे, ऐसा कभी नहीं हो सकता, अगर वह नहीं मानेगी तो उसका नाम अपनी संपत्ति से हटा देगी,

दोनों ही मां-बेटी जिद्दी, कोई किसी के बात को मानने को तैयार नहीं, प्रीति जब भी मोहित से फोन पर बात करती, घर में झगड़ा शुरू, उनके घर का झगड़ा देख, सारे पड़ोसी परेशान, उनका घर का मामला था, हम सब बाहरवाले क्या बोलते, कान में रूई डाल सो जाते,

एक दिन तो कुछ ज्यादा ही हो गया, झगड़ा से शुरूवात और रोना-धोना शुरू हो जाता है, जोर-जोर से रोने की आवाज सुनकर, कुछ लोगों की भीड़ लग जाती है, पता चलता है कि प्रीति की मम्मी ने नींद की ढेर सारी गोली खा ली है, हालत खराब है, उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है, दो दिन वहाँ रहने के बाद घर आती है, प्रीति को इतना बाध्य किया गया कि वह मम्मी की बात मानने को तैयार हो गईं,

उनकी मर्जी और उनके मनपसंद लड़के (आशीष) से शादी तो करती है, पर मंदिर में, जो बैंक में काम करता है, आशीष के घर-परिवार वाले और उसकी मम्मी बहुत अच्छी है, प्रीति की सासुजी स्कूल में पढ़ाती है, बेटे की शादी करने का मुख्य उद्देश्य घर संभालने वाली बहु की जरूरत था, प्रीति ससुराल में रहने को नाम नहीं, दो दिन वहाँ रहती तो दस दिन मायके में, मायके में रहती, मोहित से फोन पर घंटों बाते करना, जरूरत पड़ने पर उसके साथ बाजार जाना,

शादी के बाद मानो, पर पुरुष से बात करने का लाईसेंस मिल गया हो, कोई देखता तो यही सोचता, शादी-शुदा है, किसी काम से बात करती होगी, मम्मी-पापा की खुशी के लिए आशीष से शादी कर ली, मोहित आज भी प्रीति के दिल पर राज करता है, इसके लिए वो मायके में ही रहती है, प्रीति और मोहित की दोस्ती की भनक, उसके सास और पति को हो जाती है, उसके बाद जो होता है उससे पूरा मौहल्ला परेशान, जो झगड़ा तीनों लोगों के बीच था, उसमें तीन लोग और शामिल हो जाते है( मोहित, आशीष और उसकी मां)

बराबर सबके साथ बैठकर कोई रास्ता निकालने की कोशिश करते है, जमकर झगड़ा होता है पर रास्ता नहीं निकलता, कोशिश बेकार होती, इसी तरह चलता रहता है,आशीष अपने शादीशुदा जिंदगी बचाने के लिए, प्रीति की सारी गलतियों को माफ कर, अपने घर ले जाता है, वो भी सबकुछ भूलकर नई शुरुवात करना चाहती है, ससुराल में सासुजी अपने बेटे और बहू के स्वागत के लिए आंखें बिछाये बैठी है, कुछ दिनों तक, सब-कुछ ठीक चलता है, फिर भी बीच-बीच में मोहित का फोन, पति-पत्नी के बीच मनमुटाव का कारण बन जाता है, आशीष खुद को समझाता है कि एक दिन सब ठीक हो जायेगा, दो महिने बाद पता चलता है कि प्रीति मां बनने वाली है, इस खबर से सभी बहुत खुश है,

जब मोहित को यह खबर मिलती है कि प्रीति मां बनने वाली है, वह आत्महत्या की कोशिश करता है पर घरवाले बचा लेते है, ऐसी खबर से परेशान, प्रीति अपने मां घर आती और मोहित से पार्क में मिलती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

प्रीति........ तुमने ऐसा क्यों किया,

मोहित...... क्या करूँ, तुम अपने ससुराल में पति और उसके होने वाले बच्चे के साथ मस्त रहो और मैं

               तुम्हारी याद में रोता रहूं,

प्रीति.........नहीं,

मोहित...... क्या नहीं,

प्रीति......... खुश तो मैं भी नही हूँ, मेरी छोड़ों, तुम शादी कर लो, अपना घर वसा लो,

मोहित...... आज के बाद ऐसा दुबारा मत कहना, तुम्हारे सिवा मैनें कभी भी किसी को नहीं चाहा, मेरी

               जिंदगी में तुम नहीं तो और कोई नहीं, ये जिंदगी यूं ही कट जायेगी,

प्रीति...... तुम ऐसा करोगे तो मेरे लिए मुश्किल बढ़ जाएगी, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा,मै क्या करूं,

मोहित....... हम दोनों के बीच पति-पत्नी का रिश्ता है, क्या हुआ ? तुम्हारी शादी किसी और से कर दी

                गई, मुझे पापा बनना है,

प्रीति..... मैं तो मां बनने वाली हूं,

मोहित..... मेरे बच्चे कि नहीं, अपने पति ( आशीष) के, मुझे मेरा बच्चा चाहिए,

प्रीति..... ( आवाक से मोहित को देखती है)

मोहित....... इस बच्चे को नष्ट करा दो, इसके बाद हमारे बच्चे को अपनाओं, तुम पत्नी आशीष की रहो

                पर बच्चा मेरे नाम का हो, ऐसा नहीं कर सकती तो मुझे मरने को छोड़ दो, इस बार तो सबने

                बचा लिया, हर बार ऐसा नहीं होगा, मैं उसी बच्चे को देख-देख जी लूंगा, वो तुम्हारा और

             आशीष का ही बच्चा कहलायेगा, सिर्फ अपने प्यार की निशानी तुम्हारे गोद में देखना चाहता हूं,

             किसी को कुछ पता नहीं चलेगा,

प्रीति.......( सोच में पड़ जाती है) पर भावनाओं में बह जाती है, मोहित की हर बात मान लेती है, वह दो

             महिने के शिशु की हत्या, अपने गर्भ में ही कर देती है, और वही किया जो मोहित चाहता था,

"दिन बीतते है, बच्चे के होने के तारीख से सबको कुछ या बहुत कुछ पता चल जाता है, प्रीति ने अपने जैसे खुबसूरत प्यारी सी बेटी को जन्म दिया" झगड़ा आज भी अपनी जगह पर है, छोटी सी बच्ची रोती रहती है और प्रीति अपने मम्मी-पापा से बहस करते रहती है, झगड़े की आवाज के साथ-साथ बच्ची के रोने की आवाज भी तेज होती है,

मुझे यह डर सताता है, बच्ची इसी तरह रोती रही तो उसे बचाना मुश्किल हो जायेगा, किसी को भी जरा भी ज्ञान नहीं कि एक नवजात शिशु पर, इनके झगड़े का कितना बुरा असर पड़ेगा,

कभी ना खत्म होने वाले झगड़े में, नवजात बच्ची भी, ना चाहते हुए भी, उसे शामिल होने पड़ा, झगड़े का मूल कारण है, प्रीति आशीष की पत्नी होने के साथ-साथ, मोहित की प्रेमिका भी बने रहना चाहती है, ऐसे संबध से प्रीति के मम्मी-पापा बहुत नाराज है, ऐसे रिश्तें को सामाज गंदी नजरों से देखता है,प्रीति के मम्मी-पापा, नजरें नीची करके रहते है, वह ससुराल नहीं जाती, मायके में ही रहती है,

आशीष अपनी बेटी से मिलने आता है, सास-ससुर दामाद जी का मान-सम्मान करते है, आशीष बच्ची के लिए ढेर सारे खिलौने लेकर आता है, बेटी की तोतली आवाज में "पापा" शब्द आशीष के जख्मों पर मरहम का काम करता है, यही था उसके जीने का सहारा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

जब कभी भी मोहित से फोन पर बाते होती या मिलने जाती, घर में कलह रखा हुआ था, 2 साल की बच्ची खुद को उस वातावरण में ढाल चुकी थी, उसे पता चल चुका है, कि अपनी बाते मनवाने के लिए चिल्लाना पड़ता है, उसके रोने की आवाज, उनके झगड़ा करने की आवाज के साथ बराबरी करता हुआ नजर आता,

मानो वो कह रही हो........... आप सब ने "बना दिया ना मुझे, अपने जैसा"

                                                                                                   Rita Gupta.